ग़ैर मुस्लिम अदाकार का नमाज़ एपिसोडकलम से:

ग़ैर मुस्लिम अदाकार का नमाज़ एपिसोडकलम से: मुहम्मद फ़हीमुद्दीन बिजनौरी8 रमज़ान 1446 हिजरी | 9 मार्च 2025हिंदू प्रतीकों के ज़रिए मुस्लिम चिह्नों की नुमाइश एक बचकाना, बेफ़ायदा, ग़ैर संजीदा, नुक़सानदेह और दूरअंदेशी के ख़िलाफ़ अमल है। चाहे धार्मिक हस्तियाँ हों या खेल और फ़िल्म जैसे क्षेत्रों के प्रतिनिधि, दक्षिण भारत के मशहूर अभिनेता की हालिया वीडियो, जिसमें वह नमाज़ की सरगुज़श्त में शरीक हैं, ख़ुद हमारे लिए हर लिहाज़ से नुक़सानदेह है और इसका कोई फ़ायदा नहीं है। इस तरह की पहल का बुनियादी पैग़ाम “वहदत-ए-अदयान” (सर्व-धर्म समभाव) है। हिंदुओं की अक्सरीयत (बहुसंख्यक समुदाय) का ख़याल है कि तमाम मज़ाहिब (धर्म), जिनमें इस्लाम भी शामिल है, अपने तौर पर दुरुस्त और बरहक़ हैं। मंज़िल एक है, रास्ते अलग-अलग हैं, लेकिन हर रास्ता मंज़िल तक पहुँचाने में ख़ुदक़फ़ील है।”वहदत-ए-अदयान” (सर्व-धर्म समभाव) का हिंदू प्रोपेगेंडा यहाँ की सबसे बड़ी मज़हबी सच्चाई है। मुस्लिम अवाम का एक तबक़ा ज़ेहनी तौर पर इस सोच से मुतास्सिर है। हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब के नाम पर कई ऐसे जुमले (वाक्य) इस्तेमाल होते हैं जो हक़ीक़त में कुफ्र के ज़रिया बनते हैं। सेक्युलर सियासी लीडरों का टोपी पहनना, रूमाल बाँधना और रोज़े-नमाज़ का दिखावा इसी सोच को मज़बूत करता है। यह अदाकारी हमारे हक़ में नहीं है, बल्कि “भारतीय धर्म” के प्रचार की एक कोशिश है। तौहीद (एकेश्वरवाद) परस्त इसका शिकार हो रहा है और यह तौहीद की दौलत पर डाका डालने जैसा है।हम समाजी सतह पर भी एक हारने वाला पक्ष हैं। उनकी पहल की नेकी का अंजाम यह है कि हम मंदिर की पूजा में शरीक हों, वरना हम पर संकीर्ण मानसिकता, बदतहज़ीबी और असामाजिक बर्ताव का इल्ज़ाम लगेगा। वो दरियादिल कहलाएँगे और हम तंगदिल। वो बहुसंस्कृति के समर्थक माने जाएँगे और हम अलगाववादी। वो मेल-मिलाप के सफ़ीर और हम दूरियाँ बढ़ाने वाले तरजुमान। वो बराबरी के गीत गाएँगे और हम फ़र्क़ के।यहाँ से “सेक्युलरिज़्म” (धर्मनिरपेक्षता) की परिभाषा गुमराह और धुंधली हो जाती है। हमारा इत्तिहाद (एकता) ग़ैर-मज़हबी होना चाहिए। सेक्युलरिज़्म का असली मतलब यही है कि धर्म को बीच में नहीं लाया जाएगा। सहयोग, एकता, समावेश और बहुलतावाद धर्म के आधार पर नहीं बल्कि समाज और राष्ट्रहित तक महदूद रहेगा। “लकुम दीनुकुम वलिय दीन” (तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन और हमारे लिए हमारा दीन) की दीवार क़ायम रहनी चाहिए।ग़ैर-मुस्लिमों की तरफ़ से इस्लामी पहचान में शामिल होने की ख़्वाहिश पर नर्मी से माज़रत (इनकार) करनी चाहिए, ना कि हम ख़ुद उन्हें दावत दें! अगर उन्होंने इसका उल्टा कर दिया तो हम क्या करेंगे? मज़हबी तबादले (religious exchange) ख़तरनाक हैं! वो अगर क़ुरआन को इबादत की तरह चूमेंगे, तो आप गीता को किस नियत से प्रणाम करेंगे?बंबई का एक वाक़िया है। मैं एक ग़ैर-मुस्लिम के दफ़्तर में दाख़िल हुआ। इत्तेफ़ाक़ से दरवाज़े पर लगा मूर्ति गिर गया। मैं नज़दीक था, लेकिन ख़ामोश रहा और उसे उठाने से परहेज़ किया। वो दूर से दौड़कर आया और बड़े एहतराम से मूर्ति को उठाकर उसकी बलाएँ लेने लगा। बाद में मुझसे नाराज़ हो गया और बोला: “मैं दरगाहों पर जाता हूँ, तमाम इस्लामी निशानियों की पूजा करता हूँ और तुमने हमारे भगवान के साथ यह सलूक किया?”हिंदुओं के साथ समाजी मेलजोल आसान नहीं है। दूसरे लफ़्ज़ों में कहें तो “अर्ज़-ए-हिंद में तौहीद परस्ती (एकेश्वरवाद) एक तीखी तलवार और बाल से भी ज़्यादा बारीक रास्ता है।” हिंदुओं का एक तबक़ा नास्तिक है, जो अपने झूठे देवताओं के साथ ला इलाहा इल्लल्लाह (अल्लाह के सिवा कोई इबादत के क़ाबिल नहीं) को भी शामिल कर लेता है। हिंदुओं की अक्सरीयत धार्मिक है, मगर “सर्व-धर्म-समभाव” के उसूलों पर यक़ीन रखती है और चाहती है कि हम भी मस्जिद और मंदिर को बराबर मानें।खालिस मज़हबी नज़रिए से भी यह अमल नाक़ाबिले-क़बूल है। इबादत एक संजीदा अमल है। इसे नुमाइश, दिखावे और अभिनय के लिए इस्तेमाल करना इस्तिख़फ़ाफ़ (अनादर) है। दिल में इनकार हो और अज़ा (अंग) इबादत में मशग़ूल हों, तो यह महज़ अदाकारी है! गोया कि दीन को मज़ाक़, ग़ैर-गंभीरता, रस्म और तमाशे के तौर पर लिया गया। यह इबादत के तक़द्दुस (पवित्रता) की तौहीन है।इस सिलसिले में साफ़गोई (स्पष्टता) की ज़रूरत है। मेलजोल और सामाजिक एकता में मज़हबी रंग की इजाज़त नहीं होनी चाहिए। कम-अज़-कम साझा कार्यक्रमों तक ही सीमित समाजी ताल्लुक़ात (सामाजिक संबंध) क़ुबूल किए जा सकते हैं।”हम भी अजीब कोम हैं, चंद सांसों में फूल जाते हैं, बच्चे सरीखे हैं जो सिर्फ़ प्रतीकों से ही ख़ुश हो जाते हैं!”

غیر مسلم اداکار کا نماز ایپیسوڈ از قلم: محمد فہیم الدین بجنوری 8 رمضان 1446ھ 9 مارچ 2025ء ہندو رموز کے ذریعے مسلم علامتوں کی نمائش ایک بچکانہ، بے فائدہ، غیر سنجیدہ، مہلک اور دور اندیشی کے منافی عمل ہے، خواہ دھارمک ہستیاں ہوں یا کھیل اور فلم وغیرہ شعبوں کے نمائندے، جنوبی ہند کے معروف اداکار کی حالیہ ویڈیو جس میں وہ نماز کی سرگذشت میں شریک ہیں؛ خود ہمارے لیے ہمہ جہت نقصان دہ ہے اور فائدہ صفر ہے، اس طرح کی پہل کا بنیادی پیغام وحدتِ ادیان ہے، ہندوؤں کی اکثریت کا خیال یہ ہے کہ تمام مذاہب (بشمول اسلام) بحیثیت مذہب درست اور بر حق ہیں، منزل ایک ہے، راستے جداگانہ ہیں؛ تاہم ہر راستہ منزل تک دست گیری میں خود کفیل ہے۔وحدتِ ادیان کا ہندو پروپیگنڈہ یہاں کی سب سے بڑی مذہبی سچائی ہے، مسلم عوام کا ایک طبقہ ذہنی طور پر اس جرثومے سے متاثر ہے، وحدتِ ادیان کے بعض جملے ہندوستان کی مشترکہ تہذیب کا درجہ رکھتے ہیں؛ حالاں کہ وہ تعبیریں کفر کی دفعات کو متحرک کرتی ہیں، سیکولر سیاسی لیڈران کے ٹوپی، رومال اور روزے نماز کے تماشے اسی خیال کی ترویج ہے، یہ اداکاری ہمارے حق میں نہیں، یہ ہندوستانی مذہب کی اشاعت ہے، توحید پرست اس کا شکار ہے، یہ متاعِ توحید پر نقب زنی ہے۔ہم سماجی سطح پر بھی لوزر اور ہارنے والا فریق ہیں، ان کی پہل کی خیر سگالی کا تتمہ یہ ہے کہ ہم مندر کی پوجا میں شریک ہوں، بہ صورت دیگر تنگ نظری، بے مروتی، بد تہذیبی اور غیر سماجی برتاؤ کی تہمتیں قبول کریں، وہ فراخ دل کہلائیں اور آپ تنگ دل، وہ کثرت نواز قرار پائیں اور آپ علیحدگی پسند، وہ ہم آہنگی کے سفیر واقع ہوں اور ہم دوری کے ترجمان، وہ مساوات کے نغمہ سنج اور ہم فرق کے منادی۔یہاں سے سیکولرازم کی تشریح گمراہ اور پراگندہ ہوتی ہے، ہمارا اتحاد غیر مذہبی ہے، سیکولرازم پیمان کی روح یہ ہے کہ دھرم درمیان میں نہیں آئے گا، تعاون، ہم آہنگی، یک جہتی، شمولیت اور تکثیریت مذہبی نہیں ہوگی، سماجی اور ملکی اشتراک وطن اور وطنی مفادات تک محدود ہوگا، لکم دینکم ولی دین کی دیوار حائل رہے گی، یہ فرق تسلیم کرنا ہوگا۔غیروں کی طرف سے اسلامی شعائر میں شمولیت کی خواہش پر بوجہ احسن معذرت کرنی چاہیے؛ چہ جائے کہ ہم دعوت دیں، انھوں نے بر عکس دعوت دی تو آپ بغلیں جھانکیں گے! مذہبی تبادلے پُر خطر ہیں، وہ قرآن کو بوسۂ عبادت دیں گے، آپ گیتا کو کس نیت سے آداب کرو گے؟ بمبئی کا واقعہ ہے، میں ایک غیر مسلم کے آفس میں وارد تھا، اتفاق سے بابِ داخلہ پر آویزاں بت گر گیا، میں نزدیک تر تھا، خاموش اور دست کش رہا، اٹھانے کی توقیر میرے لیے ممکن نہ تھی، وہ دور سے لپکا اور تا دیر بہ ہزار تقدیس بت کی بلائیں لیتا رہا، بعد ازاں میرے رویے پر خفا ہوا، کہنے لگا: میں درگاہوں پر جاتا ہوں، تمام اسلامی علامتوں کو پوجتا ہوں اور آپ نے ہمارے خدا کے ساتھ یہ طوطا چشمی کی!ہندوؤں کے ساتھ معاشرت آسان نہیں ہے، دوسرے لفظوں میں یہ کہ ارض ہند میں توحید پرستی پل صراط ہے، بال سے زیادہ باریک اور تلوار سے زیادہ تیز، ہندوؤں کا ایک طبقہ ملحد ہے، وہ اپنے باطل خداؤں کے ساتھ الا اللہ کو بھی لپیٹ لیتا ہے، ہندوؤں کی اکثریت دھارمک ہے؛ مگر وہ “سرو دھرم سد بھاؤنا” کا عقیدہ رکھتے ہیں اور آپ سے دیر وحرم کی یکسانیت کے خواہاں ہیں، وہ تقارب اور وحدت کے اظہار کو اسمارٹ فکری کے طور پر باور کراتے اور ہم پسماندہ ٹھہرتے ہیں۔خالص مذہبی نقطۂ نگاہ سے بھی یہ عمل قابل نکیر ہے، عبادت ایک سنجیدہ عمل ہے، نمائش، نمود اور مقاصد کے لیے اس کا مظاہرہ استخفاف ہے، دل میں کفر یعنی انکار بھرا ہے، اعضا مصروف عمل ہیں تو یہ اداکاری ہے، گویا دین کو مذاق، غیر سنجیدگی، رسم اور تماشے کے طور پر لیا، یہ عبادت کے تقدس کی پامالی ہے، اس سیاق میں صاف گوئی کی ضرورت ہے، ہم آہنگی اور یک جہتی میں مذہبی رنگ کی اجازت نہیں ہو گی، کم از کم مشترکہ پروگرام والی معاشرت ہی قابلِ قبول ہے، ہم بھی خوب کم ظرف غبارے ہیں، چند سانسوں میں پھول جاتے ہیں، طفل طبع بھی ہیں، علامتیں ہی سیر کر جاتی ہیں۔

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