
शब-ए-बरात में इबादत
सवालः
अर्ज़ यह है कि शब-ए-बरात की रात ही इबादत के लिए ख़ास क्यों है? इबादत तो दिन में भी हो सकती है। क्या इस रात में इबादत करना ज़रूरी है? सोना मना है? सवाल का जवाब इस तरह मरहमत फ़रमाएँ कि तमाम शक दूर हो जाएँ। और इस रात में इबादत का क्या सवाब है?
हदीस की रौशनी में इसकी फ़ज़ीलत बयान फ़रमा दीजिए। ऐन नवाज़िश होगी।
जवाबः
कुछ ज़ईफ़ रिवायात से शब-ए-बरात में इबादत करने की तरग़ीब आई है और यह बताया गया कि इस रात में रहमत-ए-ख़ुदावंदी ख़ास तौर पर बंदों की तरफ़ मुतवज्जह होती है। इसलिये शब-ए-बरात में दीगर रातों के मुक़ाबले में कुछ ज़्यादा इबादत का एहतिमाम करना चाहिए। लेकिन इसके लिये पूरी रात जागना ज़रूरी नहीं है, बल्कि जब तक बशाशत (चुस्ती) से इबादत हो सके इबादत करें और जब नींद का ग़लबा हो तो सो जाएँ। ज़बरदस्ती जागना कोई अजर-ओ-सवाब का काम नहीं है। निज़ इस रात में इज्तिमाई तौर पर इबादत करना या किसी ख़ास इबादत को ज़रूरी समझना बे-असल है। और आजकल जो इस रात को त्योहार की तरह मनाया जाने लगा है, इसकी शरियत में कोई गुंजाइश नहीं है।
नल में ज़मज़म का पानी आना
सवालः
15 शअबान यानी शब-ए-बरात को रात बारह बजे हर नल में ज़मज़म का पानी आता है, लोगों का यह अकीदा है। तो क्या यह सही है? इत्मिनान बख़्श जवाब से नवाज़ें।
जवाबः
पंद्रह शअबान की रात में हर नल में ज़मज़म के पानी आने का अकीदा क़तअन (बिल्कुल) मन-घड़त और बातिल है। किसी मोअतबर दलिल से इसका कोई सबूत नहीं। और ऐसी मन-घड़त और सुनी-सुनाई बातों को किसी से बयान करना भी दुरुस्त नहीं है। क्योंकि बयान करने से ही इसकी अशाअत होती है। अगर लोग ऐसी बातों का ज़िक्र छोड़ दें तो यह अफ़वाहें अपनी मौत आप मर जाएँ।


